बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन कैसे करे? (Fish farming in Biofloc method in Hindi?)
“बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन कैसे करे?” आज का इस आर्टिकल में हमने मछली पालन की और एक नई तरीका बायोफ्लॉक विधि को लेके आलोचना करेंगे. हमलोग जानते है आज का दिन में मछली पालन एक बहुत जादा ग्रोविंग इंडस्ट्री है. इस व्यापार आगर सही तरीका से किया जाये तो मुनाफा बहुत जादा होता है. हम खुद इस तरीका से तिन साल से फिश फार्मिंग कर रहा हूँ. आप अगर इस “बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन” की तरीका को सही रूप से जानना चाहेंगे तो इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े. हम इस आर्टिकल में बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन के सरे जानकारी आपलोग को बिस्तर रूप में बोलेंगे.
एक समिस्खा के अनुसार साल 2050 तक ग्लोबल पपुलेशन 9.6 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है. आर सुके साथ साथ हर साल आमिस प्रोटीन का मांग बढ़ते जा रहा है . इसलिए या एक बहुत बढ़ा चेलेंज हो गया केसे हमलोग आनेबाले पीढ़ी को अमिस प्रोटीन का केए सप्लाई करेंगे . इसमें केबल मछली पालन इस चेलेंगे को सीकर कर सकता हे. उसके साथ साथ इस सेक्टर में बहुत नकरी का भी ब्यबस्था हो सकता है .
बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन तकनीक क्या है ? (What is the fish farming technique in Biofloc method in Hindi?)
बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन एक एसा टेक्नोलॉजी है जिसमें मछली का जो आहार (nutrients) लगातार पानि मे पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है . ओ ही बहुत इ कम पानी का चेंज करके . या एक microorganism में आधारित पर्यावरण के अनुकूल (environment friendly) मछली पालन का तकनीक है . बायोफ्लोक तालाबों/टैंकों में निलंबित जीवित और मृत कार्बनिक पदार्थ, फाइटोप्लांकटन, बैक्टीरिया का समुच्चय है। इस तकनिक में microbial processes को उपयोग करके बेक्तेरिया को फार्मिंग करके मछली का आहार का सोर्से को फ्लोक का रुपमे बनाते है . उसके साथ साथ पानी का जुनमन आछी राखते है.
मछली पालन में बायोफ्लॉक विधि किउ लोकप्रिय? (why Biofloc method popular in fish farming in Hindi?)
बायोफ्लॉक विधि तेजी से लोकप्रिय होए का बहुत सारे कारण है मूल रूप में इस प् प्रक्रिया में पानी का साफ करने या पानी का गुन्ब्क्ता सही राखने खर्चा बहुत कम होता है और उसके साथ मछली का आहार पानी का अंदर फ्लॉक के रूप में मछली को मिल जाता है . इसके कारण मछली को खिलने के खर्चा बहुत कम होता है .
बायोफ्लॉक विधि में कार्बोहाइड्रेट का सोर्स और जादा मात्रा में एरेसान (oxygen) की जरुरत होता है. आगर सूरज की रोशनी मिलेगा तो इस बिधि में और भी खर्चा कम होती है .
बायोफ्लॉक विधि में मछली पालन का तकनीक बिस्तार से (Technique of fish farming in detail in Biofloc method in Hindi)
सूरज की रोशनी में बायोफ्लोक सिस्टम का फार्मिंग हो रहा है तो उसमे मछली का बिना खाए हुए भोजन, मल और अतिरिक्त पोषक तत्वों को भोजन में परिवर्तित करता है।
Toxic ammonia और nitrates को ऑटोट्रॉफ़िक और हेटरोट्रॉफ़िक बैक्टीरिया दोनों Consume कर लेते है और अपने को प्रोटीन स्सेल में बिकसित करते है . उसके साथ और भी मछली पालन में उपयोग करी डायटम, कवक, शैवाल, प्रोटोजोअन और विभिन्न प्रकार के प्लवक शामिल होते हैं।
इस बेक्तेरिया श्लेष्म से जुरे रहते है , और या सारे microscopic होते है , और तैरते हुए गुच्छे को “flocs” बोलते है. जब एक्स “flocs” का आकर बढ़ा हो जाते है तब उसे हमलोग भूरे या हरे रंग में साल्ज के रूप में देख पाते है . और यह मछली और झींगा के लिए एक शानदार खाना है .
इस बायोफ्लोक सिस्टम में प्रोटीन का recycling होता है और उच्च घनत्व में मछली का पालन किया जाता है , उसके साथ साथ पानी की गुणवत्ता में कमी नही होता और बीमारी के प्रकोप का खतरा भी नही होता .
पारंपरिक मछली पलने में हम लोग जो फीड उपयोग करते उसमे फ़ीड की प्रोटीन सामग्री का केवल 25 प्रतिशत ही वास्तव में खेती की गई मछली द्वारा उपयोग किया जाता है. बायोफ्लोक सिस्टम अमोनियम को माइक्रोबियल प्रोटीन में परिवर्तित करके जिसे फिल्टर फीडर मछली द्वारा उपभोग किया जा सकता है, और इसमे हम लोग इस आंकड़े को दोगुना कर पते है, जिससे किसानों का बड़ा पैसा बचता है।
बायॉफ्लोक विधि में मछली पालन में रोग बहुत कम होता है (Disease is very less in fish farming in Biofloc method in Hindi)
बायोफ्लोक एक एयास बिधि हे , इस बिधि में रोगजनकों के प्रसार और प्रभावशीलता को कम होती हैं.
साथ ही साथ बेहतर पानी की गुणवत्ता और बेहतर फ़ीड उपलब्धता के कारण मछली के स्वास्थ्य में सुधार करती हैं।
एशिया के सबसे बढ़ा बढ़ा झींगा फार्म बायोफ्लोक में आ रहे हैं। उन लोगो का कहेना है “बायोफ्लोक के बिना हमारी कंपनी अपनी महत्वाकांक्षी विकास दर हासिल नहीं कर पाएगी”
लेकेन यह बाद सही हे कि बायोफ्लोक सिस्टम और उनके अंतर्निहित बिधि अपेक्षाकृत नई और जटिल रूप का है . इसे अछे से समजना पढ़े गा , तब उसे सफल होने में बहुत सुबिषा होगा .
बायोफ्लोक में बायॉफ्लोक विधि में मछली पालन के प्रक्रिया (Process of fish farming in Biofloc method in Biofloc in Hindi)
स्टेप 1 – टैंक और लाइनर की तालाब
साधारण बिना पोंड लाइनर की तालाब में बायोफ्लोक बिधि में मछली पालन करना सही नही होता . तालाब का मिट्टी में स्वाभाविक रूप से स्थित सूक्ष्मजीव, खनिज और भारी धातुएं तालाब के पानी के सारे प्यारामितर को बहुत आसानी से प्रभावित कर सकती है . और यह बायोफ्लोक प्रणाली में अंतर्निहित प्राकृतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। उसके साथ बायोफ्लोक टेकनिक में बहुत जादा suspended होता है . इसको कोंट्रोल करने के लिए लाइनर और कोंक्रित टैंक की जरुरत होता है . किन्तु इंडोर फार्म में जादा सुबिषा रहेते , साधारण रूप में बारिस के समय पानी का alkalinity और pH बहुत जल्दी चेंज हो जाता है. इसलिए आउटडोर तालाब से ढाका जुया फार्म बहुत आछा उत्पादन देते है .
किन्तु सूरज के किरण के बिना पानी में algae नही होगा . इस प्रकार का बायोफ्लोक सिस्टम केबल ब्याक्टेरिया के उपर निर्भर होता है. इसे ब्राउन बायोफ्लोक (brown biofloc systems) बलते है.
ओतिरिक्त स्लाज को बाहर निकाल ने के लिए तालाब और टैंक में bottom drains का बिधि होना चाहिए .
स्टेप 2 , Aeration की ब्यबस्था
बायोफ्लोक बिधि में पुरे तालाब और टैंक में बहुत जादा oxygen कि जरुरत पढ़ता है. इसलिए सारे तालाब में पानी मुभमेन्ट जरुरत रहेता है . आगर मुभमेन्ट नही रहेगा तो बहुत जल्दी अनएरोबिक स्पेस बन जाता है . और बहुत जल्दी जादा मात्रा में अमोनिया और मीथेन बन जाता है .
इस टाइप का समस्या को समाधान करने के लिए सठिक रुपमे अरेसन की जरुरत पढ़ता है . साधारण तालाब और टैंक इस के लिए पडेल व्हील और ब्लोअर की उपयोग होता है . एक हेक्टर एरिया के हिसाब से 30 HP एरेसान सिस्टम उपयोग होना चाहिए . लेकिन कितना मछली का फार्मिं हो रहा हा इसका उपर एरासान सिस्टम 250 HP तक जा सकते है .
पैडलव्हील एरेटर्स को रणनीतिक रूप से स्थापित किया जाना चाहिए ताकि तालाब में करंट पैदा हो। इसमें कही पे भी कोई भी पार्टिकल जमा नाहो पाए .
स्टेप 3 – Probiotic का प्रस्तुती
बायोफ्लोक सिस्टम में फ्लोक को बढ़ने के लिय Probiotic का कल्चर करके तालाब देना पढ़ता , और या बिज देने से पहेले करना चाहिए. लेकिन बिज अगर छोटा होगा तो फल्क का परिमाण कम राखना चाहिए .
बाजार में बहुत सारे कोम्पनी बायोफ्लोक के लिए ब्य्क्तेरिया बनाते है , कोई भी कोम्पनी का आप उपयोग कर सकते है , probiotic और prebiotic microbes जल्दी उत्पादन करने के लिय कोई भी छोटा टैंक में probiotic और prebiotic microbes के साथ पानी मिलके उसम oxijen का साप्लाई और आछे से कार्बन का सोर्स जेइसे सुगर, इया जागरी देने से फ्लोक जल्दी बन जा ता है. और इसको आप आपका तालाब में उपयोग कर सकते है .
स्टेप -4 बायोफ्लोक में कोणसा मछली आछा होता है ?
बायोफ्लोक में बहुत सारे मछली का पालन कर सकते हे , फिल्तार फिडार मछली बायोफ्लोक में सबसे जादा आचा होता है . हामारा देश में तिलापिया, झींगा, पंगासियास,मांगुर , एनाबस सारे मछली बहुत आची होते है. इस सारे मछली का फीडिंग का खर्चा इस तकनीक में बहुत कम हो जाता है .
एरेसान आछा होने से आपने उच्च स्टॉकिंग घनत्व पर विचार कर सकता है . आप झींगा के लिए 150 से 250 पोस्ट-लार्वा प्रति वर्ग मीटर के घनत्व पर स्टॉकिंग कर सकते है . तिलापिया के लिए सुरक्षित भंडारण घनत्व 200 से 300 फ्राई प्रति घन मीटर ( 1000 liter ) होगा। इससे भी जादा स्टॉकिंग करने से बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है, जिससे मछली के स्वास्थ्य और कल्याण दोनों से समझौता होता है।
कार्बन सोर्स का सही उपयोग
मछली की फार्मिंग की शुरू होने से समय में अमोनिया की आचानक बढ़ने को रोक ने के लिए , तालाब या टैंक में कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करन पढ़ेगा इसमें आपका फार्म में बायोफ्लोक सिस्टम सही से काम करेगा . । इन कार्बोहाइड्रेट में कार्बन हेटरोट्रॉफ़िक बैक्टीरिया को अमोनिया को गुणा और संश्लेषित करने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार पानी की गुणवत्ता बनाए रखता है।
वैज्ञानिक योरम के अनुसार केवल कार्बन स्रोतों का चयन करें और 10 से ऊपर कार्बन-से-नाइट्रोजन (C/N) अनुपात वाले मिश्रणों को खिलाएं क्योंकि यह इन विषमपोषी जीवाणुओं के विकास का पक्षधर है। कार्बन सोर्स के रूप में सुगर , मोलासिस , गुड उपयोग कर सकते है .
पानी का पेरामीटर का मोनिटरिंग
फार्मिंग शुरू होने के बाद आपको पानी पेरामीटर पीरियड बेसिस में मोनिटरिंग करना पढ़ेगा .
निचे पानी का पेरामीटर देख ले –
DO – 4-8ppm (parts per million)
Temperature – 28-32 C ( Ideal)
PH – 6.5-8.5
Alkalinity – 50-300 mg /lit ( ideal)
Ammonia – 0 – 0.5 mg / lit
No2 (Nitrite ) <1
No3 ( Nitrate) <100
मछली का नमूना देखना और हार्भेस्ट करना .
बायोफ्ल्क में मछली का फार्मिंग शुरू होने का बाद हर सप्ताह में मछली का नमूना लेना पढ़ते हे . और स मछली के शिसाब से उसका ग्रोथ रेट परिखा करना चाहिए . और समय होने से फसल को मार्केट करना चाहिये .