बंगाल की प्राचीन ग्रामीण काली पूजा एक बहुत जनप्रिय पूजा है और इस काली पूजा सारे दुनिया में सुप्रसिद्ध है| बंगाल में ग्रामीण इलाका में बहुत सारे पूजा बहुत प्राचीन है | बहुत सारे पूजा 100 -500 साल का पुराना है| हम आज कुछ एसा प्राचीन ग्रामीण काली पूजा जानकारी आपको देंगे|
साधारण रुपमे काली माता की पूजा दीपावली की दिन होता है| काली माता का पूजा पूरी भारत में होती है | लेकिन कुछ कुछ राज्य में बहुत जादा इस पूजा को मनाया जाता है| बंगाल में सबसे जादा इस पूजा को मनाया जाता है उसके बाद बिहार, ओडिशा , त्रिपुरा , ओसम में जादा मात्रा में इस पूजा को मनाया जाता है | पुराण के अनुसार असुर को बध करेने के लिए देबी दुर्गा का और एक रूप देवी काली, और माता काली दुर्गा माता की नेत्र से आबिर्भाब हुया था| लेकिन असुर को बध करेने के बाड भी माता काली का रूद्र रूप और तेज कम नही हो रहा था देवी काली का क्रोध को शांत करने के लिय महादेव को छल का आश्रय लेना पढ़ा , महादेब ने माता काली का चरण के सामने लेट गये , और कथा के अनुसार माता ने भगबान महादेब के ऊपर आपने पाओ राख दिया था| और उसी समय देवी काली का क्रोध समाप्त हो गया | और माता काली इस शांत रुपको लक्ष्मी का रुपमे पुर्जा किया जाती है और और क्रोधित रूप को देवी काली का रूप में पूजा किया जाती है |
बंगाल की प्राचीन ग्रामीण काली पूजा- डाकायेत काली माता का पूजा (Dakayet Kali Puja in Hindi)
डकैती करने के बाद डाकू लोग इस काली माता का पूजा करते थे| इस लिए इस काली माता नाम दाकायेत काली| कितना दिन से इस पूजा सुरु हुआ ये आभी तक कोई नही जानते | स्थानीय अधिबासी का अनुसार इस काली पूजा 100 साल से भी पुराना है | देवी रक्षा काली को साक्त बिधि के अनुसार पूजा होता है| इस पूजा में बखरी का बली दिया जाते है |लेकिन माता का भोग में शाकाहारी खिचड़ी और उसके साथ कोई प्रकार के भुजिया, मिठाई और फल दिया जाते है | इस पूजा में स्थानीय लोग के साथ साथ दूर दूर से भक्त आके पूजा के दिन माता की पूजा को मनाता है | पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर की सीमान्त माज्दियर घोष पाडार इस पूजा को लेके बहुत सारे कथा आज भी लोगो की अन्दर घूमते है | कथित है स्वाधीनता का पहेले इस इलाका में लोगो का कास्ट से दिन गुजरान होते थे | खाने को कुछ नही मिलता, ब्रिटिश का शक्त शासन उहापे चलता था | इस समय गाँव को कुछ लेढ़का के स्थिर किया उनलोग ढ्काती करके गाँव का लोगो की कहने का इन्तेजाम करेंगे | इस लिए एक दिन खबर मिला ब्रिटिश का एक ट्रेन ढाका की तरप जा राहा है और उसमे खाना है | गाँव की डाकू की दल उस ट्रेन को रोक दिया और ट्रेन का सारे खाना लुट लिया और गाँव में बाट दिया | लेकिन या खबर ब्रिटिश सेना को मिल गया | ब्रिटिश सेना ने गाँवओ पे डाकू दल को ढूंढ ना सुरु किया| और ब्रिटिश सेना का डर से दुलाल प्रमाणिक, किर्तिबास मित्र, हेमंत बिस्वास, भारत सरदार, गिरीन्द्र नाथ घोष और भी बहुत सारे जुबा जंगल में रहेना सुरु किया | और इसके साथ उनोने माता काली का स्मरण लिया| और ब्रिटिश सेना जब गाँव छोरके चला गया | उसके बाद अमाबस था , डाकू का दल एक निम् और बेल पढ़ के निचे माता काली का पूजा किया | इस डाकू की दल कभी भी किसी ब्यक्ति का हत्या नेही किया | आभी भी इस पूजा बहुत इ भक्ति के साथ मनाया जाता है |
बंगाल की प्राचीन ग्रामीण काली पूजा- जामुरिया गाँव की काली माता की पूजा ( Jamuria village ka Kali Mata ki Puja in Hindi)
जगात्दात्री माता की पूजा के समय साधक बामाखापा जामुरिया थाने की इकरा गाँव में पहेली बार आया था| लेकिन बिभिन्न कारनसे इस जागा के साथ साधक बामाखेपा के संजोग राहा था | कथित है बैद्नाथ धाम में जाने के समय ट्रेन का टीटी इकरा में बामदेब को ट्रेन से निचे उतार दिया | कथित है उसके बाद ट्रेन चल नही राहा था | फेर बामदेब को शांत करने के बाद ट्रेन चालू हुया | इस इरका गाँव की शमसान में बामदेब साधना में बेठे थे | इसके बाद इहापे हर साल बहुत बढ़ा काली माता का पूजा होता है |कथित है 1906 साल में बाम देब इस गाँव में आया था और चार दिन इहापे रहे थे | इहाके जमींदार हृषिकेश और उपके पिता बिजय ने बामदेव का भक्त था कथित है बाबामदेब बिजय को आपने भिया बोलके समोदित किया| आभी काली पूजा के साथ साथ इहापे बामदेब का भी पूजा होता है| माता काली का भोग में आमिष रहेता है, लेकिन बामदेब का भोग निरामिष से होता है|
एसा बंगाल में बहुत सारे 100 साल से भी बंगाल की प्राचीन ग्रामीण काली पूजा बहुत निष्ठा के साथ मनाया जाते है |
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